रवीश कुमार
बंदा स्मार्ट है। चुलबुला है। संवाद-संचार का कमाल है इनके यहां। वर्दी सरकारी है, रंग खाकी है मगर अंदाज़ खिलाड़ी है। होकर भी थानेदार, भाषा इनकी पब्लिक वाली है। परिचय से पुलिस के प्रवक्ता हैं मगर जब भी इनके ट्विट पर नज़र पड़ती है,गुदगुदी की हरकत होती है। आइये आपको मिलाते हैं राहुल श्रीवास्तव से। यूपी पुलिस के प्रवक्ता। पहले इनके काम का एक नमूना देखिए।
सरकारी कुर्सी पर बैठ कर इस अंदाज़ में पुलिस को पेश करने में अच्छे अच्छों का दम निकल जाए।
आधे तो इसी सोच में बीमार पड़ जाएं कि कहीं तबादला न हो जाए। मगर राहुल श्रीवास्तव ने सबसे पहले ख़ुद को भयमुक्त किया है, फिर उसके बाद अपने ट्विट से जनता को पुलिस से भयमुक्त कर रहे हैं। पुलिस वाला भी हमें छेड़ सकता है, हम उसे छेड़ सकते हैं। संवाद का एक बड़ा काम है सहजता का माहौल बनाना। जो संवाद जितना सहज बनाए वही सबसे बेहतर है।
राहुल ने अपनी इस शैली से सरकारी प्रवक्तई को जनसुलभ किया है। इनकी सूचनाओं में ‘आदेश निर्गत हो चुके हैं’ वाली भाषा नहीं है बल्कि हमारे आपके बीच की भाषा है। राहुल कई बार सूचनाओं को साझा करने के बीच खेल कर जाते हैं। हमें मालूम है कि पुलिस के भीतर की यह हक़ीकत नहीं है मगर राहुल का काम जो बाहर भेजा जा सकता है,उसकी पैकेजिंग ठीक से करना है। इस काम में अव्वल लगते हैं। जुमलेबाज़ तो नहीं मगर चुलबुलेबाज़ लगते हैं।
राहुल श्रीवास्तव के ट्विटर हैंडल पर जाइये। मुस्की छुट जाएगी। लखनऊ में पुलिस प्रदर्शनी के मौके पर आए आई ए एस अफसरों को कमांडो की वर्दी पहना दी गई है। इन तस्वीरों को ट्विट करते वक्त राहुल अपने अफ़सरान से ख़ौफज़दा नहीं है बल्कि उन्हें छेड़ रहे हैं। लिख कर भेज दिया कि एटीएस कमांडो में आपका स्वागत है। विपुल ने इनकी टाइमलाइन पर लिखा है कि एक पुलिसकर्मी का हास्यबोधन इतना अच्छा होना दुर्लभ है। इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान से किए गए एक और ट्विट में राहुल ने लिखा है कि न लिखित परीक्षा है, न इंटरव्यू है, न शारीरिक जांच है, एंटी टेररिस्ट बनने का मौका न गंवाए। हंसी भी आती है और हकीकत भी उभर आती है। एनकाउंटर का शायद यही क़ायदा होता होगा। हमारी सहयोगी यूपी एनकाउंटर पर सवाल उठाती रिपोर्ट भी याद आती है। कई बार हास्य हकीकत को अपने आप उभार देता है। हमने महाराष्ट्र में एनकाउंटर की बहादुरी के ख़ौफ़नाक खेल देखे हैं। झूठ और फ़रेब के।
आप भी यूपी पुलिस के इस प्रवक्ता की टाइम लाइन पर जाकर देखिए। अपने लिखने के तरीके से राहुल श्रीवास्तव ने पुलिस विभाग को सहज कर दिया है। वर्दी की कसावट थोड़ी ढीली कर दी है। अक्सर प्रवक्ताओं के ट्विट बोरिंग होते हैं। बचके बचाते हुए लिखे गए होते हैं। राहुल के हंसी मज़ाक के ट्विट से बहुत कुछ झलक जाता है,वह भी जो नहीं लिखना चाहते होंगे!
अनुराग शर्मा ने इनकी टाइम लाइन पर लिखा है कि “पुलिस वाला खाकी में ही जमता है, वर्दी का थोड़ा रौब रहना ज़रूरी है। अब हमारे राहुल जी की बात अलग है। इन्हें तो कई एनकाउंटर करने नहीं ना ग्राउंड में जाना है, इन्होंने तो अपनी जगह पक्की कर ली है, कि रिटायरमेंट तक ट्विटर पर ही पेलना है बस।“ राहुल इस ट्विट से चिढ़ते नहीं बल्कि जवाब में कहते हैं कि महोदय, ट्विटर पर भी रोज़ बहुत ख़तरनाक एनकाउंटर होते हैं।
राहुल के ट्विटर पर यूपी पुलिस चमक रही है। अच्छा है कि कोई विभाग में रहते हुए विभागीय कार्रवाई की तरह नहीं लिख रहा है। हर सूचना भारी भरकम आदेश लगे ज़रूरी नहीं है। अंदाज़ कर सकता हूं कि अफ़सरों को भी अटपटा लगा होगा। लगता है वे भी चुपचाप राहुल श्रीवास्तव के बनाए जा रहे इस स्पेस से एडजस्ट कर गए होंगे। यूपी में महिला अपराधी पकड़ी गई। अक्सर सूचना देते समय पुलिस वाला सोचेगा कि राज्य में अपराध की बेकाबू स्थिति की छवि न बन जाए। इस डर से तो पुलिस एफ आई आर नहीं करती है लेकिन राहुल चुटकी ले लेते हैं। पुलिस पर भी चुटकी लेते हैं और समाज पर भी।
कसम से ये प्रवक्ता बहुत अच्छा है। छवियों को बदलने की तलाश कर रही पुलिस के लिए मिसाल बन सकता है। राहुल से ही उम्मीद की जा सकती है कि एक सुबह इनके हैंडल से यह भी ट्विट होगा कि माननीय सांसद महोदय हमारे काम में दखल न दें, दखल देने का अनुभव हमारा बेहतर है! किसी एसएसपी के घर में भीड़ लेकर घुसने से पहले राहुल श्रीवास्तव का ख़्याल कर लें। कोई अपने दही को खट्टा कैसे कहे। वेल डन राहुल।