JDU में असली-नकली की जंग में फंसा पार्टी पर कब्जे का पेंच, नीतीश-शरद में से किसका होगा कब्जा ?

पटना : सियासत पर अंबर बहराईची का एक शेर बिहार की वर्तमान सियासी माहौल पर सटीक बैठता है. उन्होंने लिखा है कि- ये सच है रंग बदलता था, वो हर इक लम्हा, मगर वही तो बहुत कामयाब चेहरा था. बिहार में सत्ताधारी दल जदयू पर कब्जे को लेकर असली-नकली की जंग चल रही है. इस जंग में शरद यादव का खेमा अपने को असली जदयू बता रहा है और पार्टी का असली हकदार. वहीं, पार्टी के विधायकों और सांसदों के प्रचंड समर्थन के रथ पर सवार नीतीश खेमा पार्टी का असली हकदार अपने आपको मानता है. इस पूरे मामले पर बिहार की राजनीति को करीब से जानने वाले राजनीतिक मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त कहते हैं कि शरद खेमा और नीतीश खेमा आखिरकार चुनाव आयोग के जरिये इस दावे को सामने लायेगा. चुनाव आयोग की अदालत में यह  मामला जाने के बाद, आयोग पार्टी के राष्ट्रीय कार्यसमिति और राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों का समर्थन किस खेमे के साथ है, इसका गहन अध्ययन करेगा.  दत्त कहते हैं कि जिस खेमे के पक्ष में सबसे ज्यादा विधायक और सांसदों का समर्थन दिखेगा. उस खेमे को जदयू का असली हकदार मान लिया जायेगा. प्रमोद दत्त के मुताबिक इस पक्ष हिसाब से फिलहाल नीतीश कुमार मजबूत हैं. उधर, ताजा अपडेट के मुताबिक शरद यादव ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर कहा है कि नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रह सकते.

यूपी उदाहरण के रूप में मौजूद है

प्रमोद दत्त ने हाल में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी को लेकर मची खींचतान का उदाहरण देते हुए बताया कि मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच जब पार्टी पर कब्जे को लेकर विवाद हुआ, तो आयोग ने फैसला अखिलेश के हक में दिया. इसका सबसे बड़ा कारण था कि राष्ट्रीय कार्यसमिति और राष्ट्रीय परिषद का समर्थन अखिलेश यादव को प्राप्त था. शायद इसलिए अखिलेश यादव ने आनन-फानन में राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक बुलायी थी. इस बीच राज्यसभा सदस्यता छोड़ने के संबंध में बढ़ते दबाव के बीच जदयू के बागी नेता शरद यादव ने अपने पत्र में पलटवार करते हुए कहा है कि नीतीश कुमार ने खुद जदयू के बुनियादी सिद्धांतों का त्याग कर दिया है और इस तरह से स्वेच्छा से जदयू की सदस्यता छोड़ दी है. उन्होंने दावा किया कि पार्टी का बहुमत नीतीश कुमार धड़े और भाजपा के साथ गठबंधन का समर्थन नहीं करता है. शरद यादव ने जदयू सांसद कौशलेन्द्र कुमार के पत्र के जवाब में लिखा कि हमने 25 अगस्त को निर्वाचन आयोग के समक्ष याचिका दी है जिसमें चुनाव चिह्न आदेश 1968 के पैरा 15 के तहत हमने कहा है कि जदयू का बहुमत हमारा समर्थन करता है और इस तरह से जदयू का चुनाव चिह्न हमें आवंटित किया जाना चाहिए.

आयोग से शरद की अपील

शरद यादव ने चुनाव आयोग से यह अपील की है कि जदयू के चुनाव चिह्न को नीतीश कुमार के धड़े को नहीं दिया जाना चाहिए . यह मामला चुनाव आयोग के समक्ष लंबित है. जदयू के बागी नेता ने कहा कि ऐसा लगता है कि पूर्ण रूप से अवसरवादी राजनीति से प्रेरित होकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले धड़े ने बिहार के लोगों के उस पवित्र भरोसे को तोड़ा है जो लोगों ने जदयू में व्यक्त किया था. शरद ने कहा कि ऐसे में आपको ऐसा कोई पत्र जारी करने का नैतिक अधिकार नहीं है जो पार्टी के संविधान के खिलाफ हो. उल्लेखनीय है कि जदयू महासचिव के सी त्यागी ने कहा था कि राज्य सभा में पार्टी के नेता आर सी पी सिंह जल्द ही सभापति वेंकैया नायडू को एक पत्र सौंपेगे. इसमें शरद यादव की संसद सदस्यता रद्द करने की बात कही जायेगी. बहरहाल, जदयू के दिशानिर्देशों के विपरीत शरद यादव पटना में लालू प्रसाद की पार्टी राजद की रैली में शामिल हुए थे और बुधवार को इंदौर में उनकी ओर से विभिन्न दलों को शामिल करते हुए साझा विरासत कार्यक्रम का आयोजन किया था.

संविधान विशेषज्ञ ने रखी अपनी राय

यह पूछे जाने पर कि पार्टी के दिशा निर्देशों के खिलाफ शरद यादव का राजद की रैली में शामिल होना क्या राज्यसभा की सदस्यता के अयोग्य ठहराने का आधार हो सकती है, जाने माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची और दल बदल विरोधी कानून के अनुसार अगर किसी पार्टी का कोई सदस्य अपनी पार्टी के चिह्न पर चुनाव लड़ता है और अगर वह पार्टी के आदेश के विरुद्ध मतदान करता है या नहीं करता है. ऐसी स्थिति में उसके खिलाफ अयोग्य ठहराये जाने की याचिका दायर की जा सकती है. उन्होंने कहा कि दूसरी स्थिति में अगर कोई सांसद स्वेच्छा से पार्टी को छोड़ता है, तो उसके खिलाफ अयोग्य ठहराने की कार्रवाई की जा सकती है. अगर उसने इस्तीफा नहीं दिया है तो सवाल होगा कि उसने पार्टी छोड़ी है या नहीं छोड़ी है. कश्यप ने कहा कि ऐसी स्थिति में याचिका पर फैसला राज्यसभा के सभापति करेंगे. हालांकि ऐसे मामलों में राज्यसभा के सभापति का निर्णय न्यायिक समीक्षा के दायरे में होगा.

असली-नकली की जंग जारी

इससे पूर्व नीतीश कुमार ने हाल ही में शरद यादव को राज्यसभा में जदयू के नेता के पद से हटा दिया था. उसके बाद  शरद यादव का खेमा दावा कर चुका है कि पार्टी की कई राज्य इकाइयां उनके साथ हैं जबकि पार्टी अध्यक्ष नीतीश कुमार को केवल बिहार इकाई का समर्थन हासिल है. यादव के करीबी सहयोगी अरुण श्रीवास्तव ने कहा था कि पूर्व पार्टी अध्यक्ष के धड़े को 14 राज्य इकाइयों के अध्यक्षों का समर्थन प्राप्त है. यादव के धड़े में 2 राज्यसभा सांसद और पार्टी के कुछ राष्ट्रीय पदाधिकारी शामिल हैं. वहीं, नीतीश खेमें ने पटना में जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक कर अपने समर्थन के दावे पर मुहर लगवा ली है. फिलहाल, असली-नकली के इस जंग में चुनाव आयोग की भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो जाती है. सबकी निगाहें आयोग के फैसले पर टिकी हुई है.

 

Read More- Prabhatkhabar