Movie Review: दिल की कम सरकार की बात ज्‍यादा है ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’

Toilet Ek prem Katha Official Movie Poster

नई दिल्‍ली: डायरेक्टर श्री नारायण सिंह
कलाकार अक्षय कुमार, भूमि पेडणेकर, सुधीर मिश्रा और अनुपम खेर
रेटिंग   3.5

बॉलीवुड में कई विषयों पर फिल्‍में बनती हैं, लेकिन टॉयलेट जैसे विषय को बड़े पर्दे पर एक फिल्‍म के रुप में उतारना काबिले तारीफ है. सदियों पुरानी समस्या को इस तरह लाना समय की मांग थी. ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ में डायरेक्टर ने अच्छे विषय को अच्छे ढंग से दिखाने की कोशिश की है लेकिन फिल्‍म को फिल्‍म ही रहने देना चाहिए, सरकारी एजेंडा नहीं बनाना चाहिए. बस, यही बात इस फिल्‍म में खटक जाती है. ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ डायरेक्टर श्री नारायण सिंह की ये डेब्यू फिल्‍म है लेकिन इस निर्देशक में जबरदस्‍त संभावनाएं नजर आ रही हैं. अक्षय और भूमि की यह फिल्‍म लोगों को शौचालय की जरूरत का एहसास जरूर कराएगी.

कहानी: यह एक पंडित परिवार में जन्‍मे केशव की कहानी है, जो साइकिल की दुकान चलाता है. वह बिंदास है और ब्रेकअप भी बड़े अंदाज में करता है. केशव की राय है कि ‘पराया टीवी और पराई बीवी कभी ऑन न करना.’ लेकिन जब केशव की शादी होती है तो बीवी टायलेट की मांग करती है लेकिन पंडित पिता इसके लिए तैयार नहीं होते. पत्‍नी के प्‍यार में दीवाना केशव इसके लिए जुगाड़ करता है लेकिन उसे  कामयाबी हाथ नहीं लगती और फिर शुरू होती है शौचालय बनाने की जद्दोजहद.

फिल्म का फर्स्ट हाफ जहां मलाई की तरह चलता है, वहीं इंटरवेल के बाद फिल्म को देखकर दिमागी कब्ज का एहसास होने लगता है, क्योंकि यहां फिल्म, फिल्म न रहकर संदेश का ओवरडोज बन जाती है. कुछ सीन तो ऐसे लगते हैं जैसे मौजूदा सरकार के काम-काज की तारीफ करने के लिए ही गढ़े गए हैं. यही नहीं फिल्‍म में कहीं न कहीं डायरेक्टर ने सरकार के अलग-अलग अभियानों के साथ जोड़ने की कोशिश की है.

एक्टिंग के मामले में अक्षय कुमार और भूमि ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. दोनों की एक्टिंग जबरदस्त है. भूमि ने लोटा पार्टी और खुले में शौच की जो धज्जियां उड़ाई हैं वह कमाल है. दोनों का ही देसी अंदाज दिल को छू जाता है. अक्षय के पिता के रोल में सुधीर पांडे की एक्टिंग शानदार है. अक्षय के भाई के रोल में दिव्येंदु मजा दिलाते हैं. अनुपम खेर का सनी लियोन प्रेम मजेदार है. इस फिल्‍म के वन लाइनर भी कमाल-धमाल हैं.

‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ लगभग 2 घंटे 35 मिनट की है, अगर डायरेक्टर ने एडिटिंग पर कुछ मेहनत की होती तो इस मामले में फिल्म ज्यादा मारक हो सकती थी क्योंकि बेवजह के गाने और संदेशबाजी से बचा जा सकता था. फिल्‍म में संदेश पर ज्‍यादा फोकस करने से बचना चाहिए था क्योंकि कुछ चीजें दर्शकों के ऊपर भी छोड़ देनी चाहिए. अगर आप अच्छी परफॉर्मेंस देखने के मूड में हैं तो इस फिल्म को देख सकते हैं, लेकिन अगर आपको लगता है कि यह सिर्फ इंटरटेनमेंट के लिए फिल्म है तो आपको निराशा हाथ लगेगी. अच्‍छी एक्टिंग, अच्‍छे निर्देशन और एक अच्‍छे विषय से जुड़ी सोच के लिए इस फिल्‍म को 3.5 स्टार.

 

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