उत्तरखण्ड सरकार में सरकारी राशन का भंडाफोड़

देहरादून। (विष्णु तिवारी ) सितारगंज तहसीलदार शेरसिंह ग्वाल व् खाद्य पूर्ती क्षेत्राधिकारी के एस देव द्वारा किये गए सरकारी सस्ते गल्लों के औचक निरिक्षण में पायी गयी अनियमित्ताएं। खाद्य सुरक्षा अधिनियम के मानकों की उड़ाई जा रही हैं धज्जियाँ। एक ही सरकारी सस्ते गल्ले का दो अलग अलग जगहों पर पकड़ा गया राशन। एक ही परिवार में दो सगे भाइयों को आवंटित हैं सरकारी राशन की दुकाने। सिस्ईखेडा स्थित दीपक जैन के नाम से आवंटित कोटे पर राशन सही पाया गया तो सरकारी सस्ते गल्ले का न बोर्ड मिला न ही कोई सूचना पट तो वहीँ दूसरे भाई चिराग के नाम आवंटित मगरसड़ा गाँव की राशन की दुकान का राशन दो अलग अलग स्थानों पर पाया गया जिसकी जानकारी होने से खाद्य पूर्ती अधिकारी साफ़ तौर पर मन किया और वहां भी न तो कोई बोर्ड मिला न कोई सूचना पट। सरकारी सस्ते गल्ले के बोर्ड न लगाने के पीछे है सारा कालाबाजारी का खेल बोर्ड और सूचना पट न होने से भ्रमित कर कहीं भी दिखायी जा सकती है राशन की दूकान। तो कैसे माना जा सकता है सरकारी सस्ता गल्ला और दो जगहों से मिले एक दुकान के सरकारी राशन पर क्या होगी कार्यवाही। जबकि एक जगह मानकों को ताक पर रख कर जर्जर भवन में रखा पाया गया सरकारी राशन। किसकी मिली भगत से खेला जा रहा है राशन की कालाबाजारी का खेल।

खाद्य पूर्ती अधिकारी के एस देव ने जानकारी दी सरकारी राशन की मात्रा पूरी पायी गयी लेकिन मगरसड़ा कोटा धारक चिराग द्वारा दो अलग अलग स्थानों पर सरकारी राशन रखा पाया गया है जिसकी जानकारी उन्हें नहीं दी गयी थी। जबकि कोटा धारक का कहना है की ग्रामवासियों की परेशानियों को देखते हुए ऐसा किया गया है। जबकि हर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान पर बोर्ड और सूचना पट लगा है तो फिर इन दोनों कोटा धारकों की दुकानों पर क्यों नहीं लगाया गया है सरकारी सस्ते गल्ले का बोर्ड और सूचना पट न होने के साथ ही एक ही राशन की दुकान का राशन दो जगह पाया जाना गंभीर विषय है कैसे माना जाय ये सरकारी राशन की दुकाने है या फिर सरकारी राशन पाया जाने पर इन स्थानों को सरकारी सस्ते गल्ले का रूप दिया जा रहा है। अब देखना होगा इस पर क्या कार्यवाही की जाती है या अधिकारियों के उदासीनता के चलते यह खेल जारी रहेगा।