कानपुर क्राइम फाइल सीरीज़ 1 – अतिथ के झरोखों से – बीते सालों में प्रशासन को पानी पीला दिया था संध्या हत्याकांड ने

 

आईएम हाशमी / संजय मौर्या 

शादी, विवाह मैरिज, परिणय इसे चाहे जिस नाम से पुकारो इन सबका मतलब एक ही होता है, यानि समर्पण की भावना। कुछ लोग विवाह को धर्म मानते हैं तो कुछ लोग संस्था। लोग चाहे कुछ भी कहें लेकिन विवाह ही एक ऐसी धुरी है जिसके इर्द गिर्द ही हमारे समाज के सारे रिश्ते घूमते हैं, और विवाह में बंधा पति पत्नी का रिश्ता जहाॅ सबसे मजबूत और प्यारा जीवन भर साथ निभाने वाला, शीशे की तरह पारदर्षी होता है। वहीं यह रिश्ता अगर कल्पनाओं के अनुरूप न हो कर प्रतिकूलता के धरातल पर आ जाता है, तो भावनाओं को गलत दिषा में जाते देर नही लगती और फिर यह रिश्ता सबसे बदरंग और शीशे की तरह सबसे कमजोर साबित होता है।

कानपुर देहात सिवली का रहने वाला शिव प्रकाश तिवारी संध्या को ब्याह कर जब अपने घर लाया तो संध्या की आॅखों में भी इन्द्रधनुषी सप्तरंगी सपने तैर रहे थे, वह अच्छी कद काठी और गेारे रंग की सुन्दर युवती थी, लेकिन उसे पति के रूप में मिला शिव प्रकाश उसके सपने के अनूरूप नही था, इस कमी से उसके जीवन में भूचाल सा आ गया था, पति के सांवले रंग भारी भरकम शरीर और पुरानी विचारधारा के कारण उसका वैवाहिक जीवन दुःख मय बन गया था। शादी के दिन जब संध्या अपना घूॅघट सही से नही निकाल पाई थी, और शिव प्रकाश के किसी दोस्त की नजर उस पर पड़ गई थी तो उसने शिव प्रकाश की पीठ पर एक धौल जमाते हुए मजाक में कहा था,“ बन्दर के गले में मोतियों की माला” ठहाकों के बीच संध्या ने देखा कि शिव प्रकाश के चेहरे की रेखाएं खिचने लगीं हैं .


तमाम रस्म-व-रिवाजों को निभाने के बाद जब रात को पिया मिलन की आस में संध्या सेज पर बैठी थी तभी शिव प्रकाश ने आकर बड़े रूखे अन्दाज में कहा था, ”लगता है एक से तुम्हारा जी नही भरेगा इसी लिये पल्लू सरका सरका कर मेरे दोस्तों को अपना चेहरा दिखा रही थी।“ शिव प्रकाश के यह शब्द उसके कानों में पिघले हुए शीशे की तरह पड़े थे। और शिव प्रकाश का सारा क्रोध उस पर बिजली बन कर टूट पड़ा था, पति पत्नी के प्रणय की कोमल संवेदनाएं तार तार हो गईं, एक सुन्दर अनुभूति को अभिषाप के रूप में झेलने को संध्या विवश हो गई, शिव प्रकाश ने हैवानों की तरह अपनी ख्वाहिषों की पूर्ति की और फिर उसे ऐसे धकेल दिया जैसे कोई डिस्पोजल गिलास इस्तेमाल के बाद तोड़ मरोड़ कर फेंक देता है। उसका पोर पोर टीस रहा था, मगर उसने संवेदनाओं को बेहोश पड़े रहने में ही खैर समझी, मन के विचारों को दस दिशाओं का आकाश देने के बदले उसने उन्हें नियत्रंण के ताले में बन्द कर दिया।

वक्त का पहिया अपनी गति से बढ़ता रहा और कुण्ठाओं के बीच ही संध्या ने शिव प्रकाश के संग रहते हुए हर रिशते को निभाने का प्रयास किया। जिस प्यार, और एहसास को वह पाना चाहती थी वह शिव प्रकाश ने उसे दिया नही था, इसलिये तन और मन की ख्वाहिषें उसे तपाती रहती थी। उसके बर्दाष्त की सीमा तो तब समाप्त हो गयी जब शिव प्रकाश उस पर इतनी सख्ती करने लगा कि उसे हवा तक न छू सकेे। वह दिन के उजाले में किसी न किसी बात पर उसे प्रताणित करता। कहते हैं कि जब पति की नजर में पत्नी की कोई इज्जत मान मर्यादा नही होती है तो परिवार के और रिशते सास ससुर जेठ देवर नन्द भी नजरों से गिरा देते हैं। और जहाॅ पर लालच हो तो वहाॅ पर प्रताणित करने की तो सीमा का अन्त ही नही होता है। संध्या के पिता ने वैसे तो उसकी शादी पर सात लाख रूपये तक खर्च किया था लेकिन ससुराल वालो का मुॅह सीधा न था वह तीन लाख रूपये की और माॅग करने लगे, जो कि संध्या के घर वाले अब दे नहीं सकते थे।


संध्या की जिन्दगी अजीरन बन गयी थी। उसे किसी भी पल किसी भी तरह सुकून नहीं मिल रहा था। संध्या ने कभी भी नहीं सोचा था कि शादी के बाद उसे इतने कष्ट मिलेंगे कि उसका रोम रोम कराह उठेगा। वह शादी से पहले अपने भाई और बहनों के साथ कितनी खुश रहती थी। वह अपने भाई बहनों में सबसे छोटी थी। उसके पिता देवी प्रसाद शुक्ला कानपुर देहात के बैरी गाॅव में रहते थे, उनके पास काफी उपजाऊ जमीन थी। जिससे उनका परिवार काफी सुखी था। उनके घर में मोहब्बत की गंगा बहती थी। संध्या के माता पिता कभी ऊॅची आवाज में बात नहीं करते थे। उसे पता नहीं था कि लड़ाई कैसी होती है नफरत किस बला का नाम है। दुःख तकलीफ यातना किसे कहते हैं, उसे पता नहीं था। उसकी बड़ी बहेन सरिता की शादी हुई तो उसकी बहेन काफी खुश थी। वह जब ससुराल से आती थी तो अपने ससुराल वालों की तारीफ करते नहीं थकती थी। संध्या भी अपनी बहेन की खुषियों को देख खुश थी। उसे लगता था कि शादी के बाद उसका भी जीवन उतना ही खुशहाल होगा। जब कानपुर के शिवली के रहने वाले उसके पापा के दोस्त ने जब शिव प्रकाश के बारे में बताया और उसकी तथा उसके घर वालों की तारीफ की तो संध्या फूले न समाई। वह भी हर लड़की की तरह अपने सपनों के राजकुमार को हकीकत में बदलते हुए देख कर बेहद खुष थी। लेकिन शादी के बाद ऐसा नहीं हुआ। उसे तो शादी के बाद एक भी पल खुशी का नसीब न हुआ।

जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था वैसे वैसे उसकी तकलीफों में भी इजाफा हो रहा था। घर की नौकरानी से भी ज्यादा बद्तर उसकी जिन्दगी थी। न दिन में चैन था न रात में चैन था। और ना ही उसे मायके जाने दिया जाता था। पति का वहशीपन उसके धैर्य की सीमा को समाप्त कर रही थी। लेकिन शादी के तीन साल के अन्तराल में संध्या ने दो बेटों को जनम दिया बड़े बेटे का नाम अपूर्व रखा तथा दूसरे का नाम विभोर रखा। संध्या अपने बेटों से बहुत प्यार करती थी। इसलिये पति के जुल्मों को नजर अन्दाज कर वह लोगों से हंसती बोलती और अपने गम को भुलाने की कोशीश करती।  शिव प्रकाश का परिवार बढ़ा तो उसकी जिम्मेदारियाॅ भी बढ़ गयी। तब वह कानपुर शहर आ गया और गुजैनी में महाकालेष्वर मन्दिर के पास उसने अपना मकान बनवा लिया और शास्त्री नगर में एक कार्यालय खोल लिया जिसमें उसने ज्योतिषाचार्य का कार्य शुरू कर दिया, साथ ही कथा-भागवत वगैरह की बुकिंग करने लगा जिससे उसे बाहर भी जाना पड़ता था। समय का चक्र अपनी गति से आगे बढ़ा तो अपूर्व और विभोर स्कूल जाने लायक हो गये। शिव प्रकाश ने उनका नाम पास के माण्टेसरी स्कूल में लिखा दिया। अब जब शिव प्रकाश घर में नही होता तो बच्चों को स्कूल से लाने और ले जाने की जिम्मेदारी संध्या पर होती और इसी वजह से घर की चार दीवारी में कैद रहने वाली संध्या बाहर निकलने लगी। वह जब भी बाहर निकलती तो मोहल्ले के लोगों से काफी घुल मिल कर बात करती।

पड़ोस में रहने वाली अनीता सेंगर के एकलौते पुत्र से कुछ ज्यादा ही घनिष्ठता कायम कर ली थी। वह संध्या को भाभी कह कर सम्बोधित करता था, जिससे देवर भाभी के रिश्ते की वजह से काफी हंसी मजाक हो जाती थी। जो कि शिव प्रकाश को पसन्द न था, और इस बात को लेकर दोनो के बीच काफी झगड़ा हो जाता था। यही नही शिव प्रकाश को संध्या के ऊपर इस बात का भी शक था कि उसका सम्बन्ध उसके साढू राजेश से है क्योंकि संध्या का जीजा जब भी संध्या के पास आता तो संध्या उनसे खूब हॅस कर खुल कर बात करती जीजा साली में ऐसी मजाक भी होती जिससे दोनो खिलखिला कर हॅस पड़ते। संध्या कभी कभी फ्लाइंग किस भी करती जिसे देख शिव प्रकाश जल भुन कर कोयला हो जाता। और फिर साढ़ू के जाने के बाद वह संध्या को जम कर गाली देता और मार पीट करता।

संध्या अपनी इज्जत की खातिर घर के अन्दर की लड़ाई को घर के अन्दर ही रखती, वह अपने बच्चों के लिये पति के साथ रह रही थी। सब कुछ ठीक था। कि तभी 25 जून को टी0 वी0 देखने के बाद शाम छ: बजे अपूर्व किचन में कुछ खाने की गरज से गया तो देखा उसकी माॅ संध्या खून से लथ पथ फर्श पर पड़ी है पाॅच साल का अपूर्व भय से काॅपने लगा और रोता हुआ घर के बाहर आया और पड़ोस में रहने वाली अनीता सेंगर को माॅ की स्थित बतायी तो अनीता सेंगर ने मोहल्ले के और लोगों को बताया फिर कुछ लोग हिम्मत कर के संध्या के घर में दाखिल हुए और उन्होंने उसे करीब से जाकर देखा तो पाया कि संध्या के प्राण अब बाकी नही हैं वह काफी समय पहले ही इस दुनिया से रूख्सत हो चुकी है। क्योंकि आस-पास फैला हुआ खून सूख चुका था।

संध्या की हत्या की खबर जंगल में लगी आग की तरह थोड़ी देर में पूरे इलाके में फैल गयी कुछ संभ्रान्त लोगों ने थाना गोविन्द नगर को इस घटना की सूचना दे दी। थानाध्यक्ष विनोद कुमार मिश्रा ने तुरन्त अपने सहयोगी राकेश कुमार मौर्या को लिया और अपने दल बल के साथ घटना स्थल पर पहुॅच गये। बारीकी से मौका-ए-वारदात का मुआयना किया और फिर अपने उच्च अधिकारियांे को भी इस हत्या की सूचना दे दी। और फिर कुछ ही देर में सी0 ओ0 ओमप्रकाश सिंह व फोरिंसिक टीम भी आ गयी। संध्या का कत्ल बड़ी बेरहमी से किया गया था। उसके सर पर किसी भारी चीज से वार किया गया था। जिससे सर पर काफी गहरी चोट लगी थी, कैंची से उसके गले पर कई जगह प्रहार किये गये थे, जिससे उसकी शवांस नली कट गयी थी। जिस्म पर कई जगह खरोच के निषान थे हाथों में कुछ बाल थे चूड़ियाॅ टूटी पड़ी थीं, घटना स्थल यह दर्शा रहा था कि मरने वाली ने काफी संद्यर्ष किया था। किचन में रखे फ्रिज और दीवारों पर खून के छीटे थे। चाय के दो कप भी खाली रखे थे। फोरिंसिक टीम ने फ्रिज व दीवार से खून खुरच कर उसका नमूना लिया। कप से फिंगर प्रिन्ट लिये। टीम ने घटना स्थल पर कुत्ता छोड़ा तो वह शव को सूंघता हुआ तेजी से बाहर निकला और टैम्पो स्टैंड तक गया। फिर वहाॅ से लौट आया। कातिल तक पहुॅचने में कुत्ता मदद नही कर पाया। संध्या के मरने की खबर पा कर उसकी माॅ गंगादेवी पिता देवी प्रसाद शुक्ला और भाई पारस नाथ शुक्ला भी आ गये। सभी संध्या की लाश से लिपट कर रो रहे थे परिवारिक जन उन्हें ढाढ़स बॅधा रहे थे।


मकान में नीचे की ओर हाल था तथा आगे टीन सेड पड़ा था, उसी साइड से जीना था, ऊपर के पोर्षन में किचन था उसके बगल में कमरा और सामने लाबी थी, जिसमें टी0 वी0 रखा था। पुलिस ने बगल के कमरे में रखी अलमारी की तलाशी ली, तो सारी चीजें व्यवस्थित थीं। केवल अलमारी का लाॅकर टूटा हुआ था। अब तक शिव प्रकाश भी आ चुका था उसने पुलिस को बताया कि लाॅकर में सात तोला सोना और चालीस हजार रूपया रखा था। पुलिस ने बारीकी से अलमारी का निरीक्षण किया तो अलमारी में टंगे कोट की जेब में चालीस हजार रूपये मिल गये और सोना भी छुपा हुआ मिल गया।

सोना व रूपया बरामद होना इस ओर संकेत कर रहा था कि हत्या लूट के लिये नही की गयी है। हत्या की क्या वजह हो सकती है यह तलाश करने की कोशिश पुलिस करने लगी। साथ ही कागजी कार्यवाही पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिये भेज दिया। तथा हत्या में प्रयुक्त कंैची तथा खून का नमूना आदि लेकर सील मोहर कर दिया और वापस थाने आकर संध्या के भाई पारस नाथ शुक्ला की तरफ से थाने के रजिस्टर में मु0 अ0 सं0 328/15 पर भा0 द0 वि0 की धारा 302 के तहत अज्ञात अभियुक्तों के विरूद्ध दर्ज कर लिया।

अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गयी जिसमें संध्या की ष्वांस नली कट जाने से हुई थी, सिर, गर्दन, और चेहरे पर एक दर्जन से ज्यादा चोटें थीं। मारने वाले ने बड़ी निर्दयता से मारा था। बलात्कार जैसी घटना की पुष्टि नही हुई थी। परिजनों ने किसी से रंजिष होने की भी आषंका व्यक्त नही की। संध्या स्वभाव से बहुत ही मृदुभाषी थी।

शिव प्रकाश ने पुलिस का सहयोग करते हुए बताया कि पड़ोस में कुछ बाहरी लड़के रहते हैं वह ऊपर छत से मेरे घर की तरफ देखते थे फ्लाइंग किस फेंकते थे जिसकी वजह से संध्या नाराज हुई उन्हें खरी खोटी सुनाई थी हो सकता है उन्हें अपना अपमान सहन न हुआ हो और उन्होंने संध्या की हत्या कर दी।  शिव प्रकाश के बयान के आधार पर पुलिस ने उन लड़को को अपनी गिरफ्त में ले लिया, और उनसे पूॅछ-ताॅछ की तो उन लड़कों ने बताया कि मेरी उम्र से संध्या काफी बड़ी थी वह दो बच्चों की माॅ थी हम उस पर डोरे कैसे डाल सकते हैं हम तो परदेषी हैं खुद डर-डर कर रहते हैं। किसी युवती को क्यों कर ताकेंगे।

लड़कों से जब कोई खास जानकारी न मिल पाई तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। तब शिव प्रकाश ने अनीता के बेटे शेखर का नाम लेते हुए कहा कि शेखर की गलत नियत थी, वह संध्या को पाना चाहता था, और पा नही पाया होगा तो इसी वजह से उसने मेेरी संध्या की हत्या कर दी होगी।
पुलिस ने शेखर को भी अपनी गिरफ्त में लिया और उससे भी पूॅछ ताॅछ की लेकिन शेखर ने यही कहा कि वह उसे भाभी कहता था और वह उससे उम्र में बड़ी थी मै उसकी इज्जत करता था भाभी देवर का रिष्ता होने की वजह से वह मुझसे कभी कभी मजाक कर लेती थी क्योंकि वह हॅसमुख स्वभाव की थी हर एक से बड़े अपनत्व से बात करती थी। उसके स्वभाव को मोहल्ले के सभी लोग पसन्द करते थे। पुलिस ने संध्या के चरित्र के बारे में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह चरित्रहीन नही थी, वह स्वभाव से मिलनसार थी, उसकी किसी से न तो कोई दुष्मनी थी और ना ही किसी से उसके अंतरंग सम्बन्ध थे।

पुलिस ने शेखर को भी छोड़ दिया। धीरे धीरे वक्त गुजरता जा रहा था लेकिन संध्या का हत्यारा पुलिस की गिरफ्त से बाहर था। दरोगा राकेश कुमार मौर्य ने अपूर्व से पूॅछ ताॅछ करनी चाही तो शिव प्रकाश ने कहा कि “साहब आप लोग बच्चे से क्या पूॅछते हो उनके सर से तो माॅ का साया चला गया वह किसी भी स्थित में बात करने लायक नही हैं आप कुछ पूॅछोगे तो बेचारे रो पड़ेंगे”। शिव प्रकाश की स्थिति को समझते हुए राकेष कुमार मौर्या खामोष हो गये। और मन्द गति से अपनी तफ्तीष जारी रखी। मामला उलझता जा रहा था, लेकिन पुलिस का अनुभव कह रहा था कि हत्या का राज शिव प्रकाश के घर में ही छिपा है। पुलिस ने इसी दिशा में जाॅच शुरू की और थानाध्यक्ष ने शिव प्रकाश के भाई राम प्रकाश को मसवानपुर से अपनी गिरफ्त में ले लिया। उससे भी काफी कड़ाई से पूॅछ-ताॅछ की गयी, लेकिन हत्या का राज नही खुला। पुलिस ने शिव प्रकाश के चचेरे भाई गुड्डू को अपनी हिरासत में लिया उससे कड़ाई से पूॅछ-ताॅछ हुई, लेकिन हत्या की परत नही खुली।

अब तक कई लोग पुलिस हिरासत में लिये गये पूॅछ-ताॅछ हुई लेकिन हत्या के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिल सकी। हत्या क्यों और किसने की यह राज अंधेरे में लुप्त होता नजर आ रहा था। इधर शिव प्रकाश ने मोहल्ले के एक दो लोगों से कहा कि पुलिस संध्या के हत्यारे को पकड़ नही पा रही है, क्या वह मुझे ही पकड़ेगी, अगर ऐसा हो तो मेरे बच्चों को देखना।

शिव प्रकाश के यह वाक्य राकेश कुमार मौर्या के कान तक पहुॅच गये। फिर राकेश कुमार मौर्या का सारा ध्यान शिव प्रकाश की तरफ गया और फिर संध्या के माता पिता से पुलिस ने पूॅछा कि उनकी बेटी के प्रति शिव प्रकाश का कैसा व्यवहार था। तब संध्या के पिता ने बताया कि मेरी बेटी हॅस मुख स्वभाव की थी और शिव प्रकाश उसके चरित्र पर शक करता था। उसका मानना था जो स्त्री मान मर्यादाओं की सीमा को लाॅघती है वह निर्लज्ज और चरित्रहीन होती है। इसलिये वह अक्सर संध्या से मार पीट करता था और उसे बड़ी निगरानी में रखता था मायके भी नही जाने देता था।


अब तक फोरिंसिक रिर्पाेट तथा फिंगर प्रिन्ट भी आ गये थे जो कि शिव प्रकाश की ओर संकेत कर रहे थे। थानाध्यक्ष विनोद कुमार मिश्रा ने अपने सहयोगी राकेश कुमार मौर्या के साथ शिव प्रकाश के घर पर छापा मारा और उसको अपनी गिरफ्त में ले लिया। और कड़ाई से जब उससे पॅॅूछ-ताॅछ की गयी और एस0 पी0 राजे यश के सामने पेश किया गया तो उसने अपना अपराध स्वीकार करते हुए अपने शक का पिटारा खोला, जिसके चलते उसने अपनी नेक दिल और सीधी सादी पत्नी को सदा के लिये इस दुनिया से विदा कर दिया । शिव प्रकाश ने बताया कि संध्या अपने बहनोई से बहुत घुल मिल कर बात करती थी। उसका जीजा जब भी कानपुर आता तो उससे मिलने जरूर आता था। और कभी उसको देर हो जाती थी तो वह रूक भी जाता था। दोनो के बीच कभी कभी अशलील मजाक भी होेती थी।

जिससे उसके दिल में एक जलन सी पैदा होती थी। वह सोंचता था कि संध्या का उसके जीजा से अवैध सम्बन्ध शादी के पहले से हैं। इसलिये उसे साढ़ू राजेश का आना जाना पसन्द न था। वह संध्या के चरित्र पर बेपनाह संदेह करने लगा था, जिसके चलते वह उसकी बहुत निगरानी करता था। जिससे संध्या खिसिया जाती थी, और फिर दोनो में झगड़ा होता, मार पीट होती। एक दिन संध्या ने खिसिया कर कह दिया अपने गिरेबान में मुॅह डाल कर देखो, तुम कहाॅ दूध के धोये हो। उस सीसामऊ वाली युवती के पास क्यों जाते हो। कान खोल कर सुन लो जिस दिन मैने अपना मुॅह खोल दिया उस दिन मुॅह दिखाने लायक नही बचोगे, सारी पण्डिताई धरी रह जायेगी। मोहल्ले के जो लोग तुम्हारी बड़ी इज्जत करते हैं तुम्हें संस्कारी समझते है वह तुम्हारी असलियत जान लेंगे तो वह नफरत से तुम्हें देखेंगे।

संध्या ने जो कहा था वह सच था, शिव प्रकाश कहने को तो पण्डिताई करता था धर्म कर्म की बातें करता कथा बांचता था लेकिन चरित्र से गिरा हुआ इन्सान था इसी लिये वह अपनी पत्नी को भी षक की नजर से देखता था। शिव प्रकाश के पास एक युवती ज्योतिष सीखने आती थी। जिससे शिव प्रकाश के मधुर संबन्ध थे। 16 जून 2015 को संध्या के बहनोई राजेश के घर सांस्कृतिक कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में षामिल होने संध्या अपने पति और बच्चों के साथ पहुॅची थी। जितने समय तक शिव प्रकाश वहाॅ रहा वह संध्या और उसके जीजा पर ही नजरे गड़ाये रहा। प्रोग्राम खत्म होने के बाद जब शिव प्रकाश ने संध्या से घर चलने को कहा तो उसने एक सप्ताह जीजा के यहाॅ रह कर आने की बात की और वह रूक गयी। षिव प्रकाष का खून खौल उठा वह उसी समय उसे वहीं खत्म कर देना चाहता था लेकिन वहाॅ ऐसा करना सम्भव न था इसलिये वह खून का घूॅट पी कर वापस अपने घर आ गया।

अब उसे पक्का यकीन हो गया था कि संध्या का सम्बन्ध उसके जीजा से जरूर है, तभी वह जीजा के घर रूक गयी है। और फिर इसी शक की वजह से उसने संध्या को मौत के घाट उतारने का प्रण कर लिया। एक सप्ताह बाद जब संध्या अपने जीजा के घर से वापस आई तो दोनो में जम कर लड़ाई हुई। जिसमें षिव प्रकाष ने जीजा से ही अवैध सम्बन्ध का आरोप नही लगाया बल्कि षेखर से भी अवैध सम्बन्ध होने की बात कही। जिससे संध्या ने खिसिया कर कहा हाॅ जाओ मै गलत हूॅ मेरे एक नही कई से सम्बन्ध हैं तुम्हें जो करते बने करलो, रोक सकते हो तो रोक लो। दोनो के बीच जम कर लड़ाई हुई, और फिर शिव प्रकाश अपने कार्यालय चला गया।

कार्यालय में उसका मन नही लगा। नफरत की आग शोला बनने लगी। और उसने संध्या को जान से मारने का पूरा मन बना लिया। और फिर वह दोपहर को घर आ गया। उस समय पड़ोस की लड़की सपना उसके बच्चों को ट्यूषन पढ़ा रही थी। कुछ देर बाद सपना भी चली गयी, और बच्चे भी बाहर खेलने चले गये। उस समय दिखावे के लिये शिव प्रकाश भी घर से बाहर चला गया था। लेकिन एक घण्टे बाद पुनः वापस आ गया। उस समय संध्या किचन में थी चाय बना रही थी। संध्या ने दो कप में चाय डाली एक कप शिव प्रकाश को पकड़ा दिया। संध्या ने तो अपनी चाय पी ली मगर शिव प्रकाश ने अपनी चाय नाली में उड़ेल दी। और क्रोध से जलते हुए उसने किचन में रखा सिल का बट्टा उठाया और संध्या के सर पर दे मारा संध्या ने अपने बचाव में उसके बाल पकड़ लिये, लेकिन छोटे बाल होने की वजह से वह ज्यादा देर तक संध्या के हाथ मेें न टिक सके तब शिव प्रकाश ने किचन में रखी कैंची उठा ली और ताबड़ तोड़ उसके ऊपर वार करने लगा, जिससे कुछ ही देर में संध्या फर्ष पर गिर गयी और फिर शिव प्रकाश ने उसकी स्वांस नली पर कई प्रहार किये जिससे उसकी स्वांस नली कट गयी और वह हमेषा के लिये मौत की आगोष में सो गयी।

संध्या की हत्या के बाद शिव प्रकाश सबकी नजरें बचा कर घर से बाहर चला गया। पाॅच बजे विभोर और अपूर्व बाहर से खेल कर घर में आए और टी0 वी0 देखने लगे एक घण्टे तक टी0 वी0 देखने के बाद अपूर्व कुछ खाने की गरज से किचन में गया तो माॅ को खून से लथ पथ पाया। तब भाग कर उसने अनीता सेगर को बताया। अनीता ने मोहल्ले के लोगों को बताया और फिर पुलिस को तथा शिव प्रकाश को सूचना दी। 10 जुलाई 2015 को पुलिस ने शिव प्रकाश को सम्बन्धित अदालत में पेश किया जहाॅ से उसे जेल भेज दिया गया। अपूर्व और विभोर अपने नाना नानी के पास हैं श क के शैतान ने इन बच्चों के सर से माता पिता दोनो का साया छीन लिया।

कथा पुलिस सूत्रों व जन चर्चा पर आधारित है।