जमीन समाधि सत्याग्रह: ये देश है बदहाल किसानों का

जयपुर में पिछले कई दिनों से किसान खुद को जीते जी गड्‌ढे में गाड़ कर अपनी जमीन बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में किसानों को पुलिस ने नंगा कर के पीटा. शिरडी में राष्ट्रपति द्वारा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के उद्घाटन के मौके पर उन किसानों को घर में नजरबन्द कर रखा गया, जिनकी जमीन इस एयरपोर्ट के लिए ली गई थी. दिल्ली से सटे नोएडा प्रशासनिक कार्यालय में अपनी जमीन के बदले में उचित मुआवजा और अधिकारों की मांग के लिए किसानों ने धरना दिया, तो महाराष्ट्र में खेतों में दवा का छिड़काव करते हुए 18 किसानों की मौत हो गई और 70 अस्पताल में भर्ती हैं. इन चार घटनाओं के जरिए हम आपको देश के किसानों की बदहाल स्थिति बताना चाहते हैं. इस कहानी को पढ़ने के बाद, आप खुद तय करें कि जय जवान, जय किसान का नारा लगाने वाले इस देश में आखिर किसकी जय है और किसकी पराजय है.

जब प्रधानमंत्री दिल्ली में कंपनी सेक्रेटरी की एक सभा में देश की आर्थिक स्थिति के गुलाबी आंकड़े पेश कर रहे थे, उसी वक्त दिल्ली से सटे नोएडा विकास प्राधिकरण में सैकड़ों किसान धरना दे रहे थे और दिल्ली से 250 किलोमीटर दूर जयपुर में 50 से अधिक किसानों ने खुद को जीते जी गड्‌ढेे में गाड़ कर जयपुर विकास प्राधिकरण के खिलाफ आन्दोलन की मुनादी कर दी थी. तकरीबन उसी वक्त टीकमगढ़ में सैकड़ों किसानों को पुलिस नंगा कर के पीट रही थी. और इन सब के बीच, दिल्ली में पावर प्वायंट प्रजेंटेशन के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कंपनी सेक्रेटरीज को और मीडिया के लाइव भाषण के जरिए देश-दुनिया को ये बता रहे थे कि कैसे देश दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की कर रहा है.

राजस्थान की राजधानी जयपुर से सटे गांव नींदड के सैकड़ों किसानों ने खुद को गड्‌ढे में गाड़ कर किसान आन्दोलन को एक नया रूप दिया है, वहीं ये तरीका यह भी बताता है कि जब आम आदमी की आवाज सरकारी संस्थाएं नहीं सुनती हैं, तो उन्हें क्या-क्या नहीं करना पड़ता है. इन किसानों ने अपने इस आन्दोलन को जमीन समाधि आंदोलन का नाम दिया है.  किसानों ने उसी जमीन पर गड्‌ढे खोदकर अपना आन्दोलन शुरू किया, जिस जमीन को जयपुर विकास प्राधिकरण एक आवासीय योजना के लिए अधिग्रहित कर रही है. करीब 51 खोदे गए गड्‌ढों में बैठकर पुरुष और महिलाएं अपना विरोध दर्ज कराने लगे. इनलोगों का कहना है कि जब तक जयपुर विकास प्राधिकरण अधिग्रहण के अपने फैसले को नहीं बदलती और इस अधिग्रहण को रद्द नहीं करती, तब तक उनका आन्दोलन जारी रहेगा. चौथी दुनिया से बात करते हुए नींदड बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक नागेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि यह आन्दोलन अब थमने वाला नहीं है. अगर सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी, तो हम इस आन्दोलन को आमरण अनशन में बदल देंगे.

20 ढाणी, 18 कॉलोनी, 12 हजार लोग प्रभावित

जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) ने नींदड गांव की 1350 बीघा जमीन पर एक आवासीय योजना डेवलप करने की योजना बनाई है. वहीं, किसानों का कहना है कि एक तो उनके पास जमीन बहुत कम है और ये जमीन ही उनके जीने-कमाने का जरिया है, ऐसे में वे अपनी जमीन नहीं देंगे. किसानों का कहना है कि जयपुर विकास प्राधिकरण ने जमीन अधिग्रहण के लिए जो सर्वे किया है, वो सर्वे ही गलत है. इसी वजह से वे इस अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं. इस योजना की वजह से नींदड गांव के करीब 20 ढाणी (टोला), 18 कॉलोनी और इस तरह तकरीबन 12 से 15 हजार लोग प्रभावित हो रहे हैं. नगेन्द्र सिंह शेखावत बताते हैं कि यहां के लोगों के पास मुश्किल से आधा बीघा से 1 बीघा जमीन है. यहां के लोग इसी जमीन पर खेती या पशुपालन कर अपना जीवनयापन करते हैं. ऐसे में अगर वह जमीन भी उनसे छिन जाएगी तो लोगों का जीवन तबाह हो जाएगा. शेखावत बताते हैं कि अभी तक सिर्फ 274 बीघा जमीन ही किसानों ने सरेंडर किया है. बाकी जमीन पर अभी तक जेडीए का कब्जा नहीं हुआ है. वे बताते हैं कि आन्दोलन शुरू होने के बाद जिन लोगों ने पहले जमीन सरेंडर किया था, वे भी अब जेडीए के विरोध में आ गए हैं. उनका कहना है कि हमारी कोई भी मांग मुआवजे से संबंधित नहीं है, हमें मुआवजा नहीं अपनी जमीन चाहिए. उन्होंने जेडीए पर ये भी आरोप लगाया कि जेडीए ने जमीन अधिग्रहण के लिए जो सर्वे किया है, वो किसानों के दादा-परदादा के नाम से किया है, क्योंकि जमाबन्दी में उनका ही नाम है. असलियत ये है कि परिवार बढ़ने से जमीन का टुकड़ा छोटा होता चला गया. आज तो यहां के किसानों के पास बमुश्किल 1 बीघा जमीन ही है. इतनी कम जमीन होने के बाद भी अगर सरकार उसे अधिग्रहित कर लेती है तो फिर बेचारे किसान कहां जाएंगे? उन्होंने बताया कि ये सभी जमीन खेती की है और खेती की जमीन का अधिग्रहण भी गलत है. इसके लिए कम से कम 80 फीसदी किसानों की सहमति जरूरी है, जो जेडीए के पास नहीं है. हमारी मांग है कि इस अधिग्रहण को तत्काल निरस्त किया जाए. जमीन समाधि सत्याग्रह में 27 महिलाएं भी शामिल हैं. इस दौरान कुछ महिलाओं और पुरुष आन्दोलनकारियों की तबीयत भी बिगड़ गई, इसके बावजूद लोगों का हौसला बुलन्द है. उनका कहना है कि सरकार उनकी खेती की जमीन जबर्दस्ती ले रही है. वे खेती नहीं करेंगी तो जीएंगी कैसे? उनका ये भी तर्क है कि जेडीए की कई पूर्व योजनाओं में जमीन के प्लॉट अभी तक खाली पड़े हैं, फिर भी उनकी नजर हम गरीब किसानों की जमीन पर है.

किसानों ने नहीं लिया मुआवजा, कोर्ट में जमा

16 सितंबर को जब जेडीए ने आवासीय योजना के लिए एंट्री गेट बनाने के लिए सीकर रोड की तरफ 15 बीघा जमीन का कब्जा लेते हुए सड़क बनाई, तभी से इस अधिग्रहण से प्रभावित किसान आन्दोलन करने के लिए जमीन पर आ गए. किसानों ने इस नई सड़क को खोद दिया और गड्‌ढे बना कर जमीन समाधि सत्याग्रह शुरू कर दी. जेडीए के मुताबिक, 1350 बीघा जमीन में से करीब 500 बीघा जमीन पर कब्जा हो गया है. लेकिन अब भी 700 बीघा से अधिक जमीन किसानों के पास ही है. इन किसानों ने जेडीए द्वारा दिया गया मुआवजा अभी तक नहीं लिया है. आवासीय स्कीम के एंट्री प्वाइंट की 15 बीघा जमीन का मुआवजा भी किसानों ने नहीं लिया है. इसके बाद जेडीए ने मुआवजा राशि कोर्ट में जमा करा दिया. किसानों का मानना है कि राज्य सरकार किसानों के प्रति संवेदनहीन हो चुकी है. जेडीए तानाशाही कर रही है. नींदड बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक नगेंद्र सिंह शेखावत का कहना है कि राजस्थान की भाजपा सरकार हमसे जमीन लेकर पूंजीपतियों को देना चाहती है, लेकिन हम किसी भी कीमत पर ऐसा नहीं होने देंगे.

 

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