पोल – खोल :- PM मोदी का दावा कोई भी कांग्रेस नेता जेल में भगत सिंह से मिलने नहीं गया.. सच्चाई क्या है?

“देश के लिए मर मिटने वाले, आजादी के जंग के अन्दर जान खपाने वाले, वीर शहीद भगत सिंह जब जेल में थे। मुकदमा चल रहा था। क्या कोई कांग्रेसी परिवार का व्यक्ति शहीद वीर भगत सिंह को मिलने गया था? बटुकेश्वर दत्त, उनपर मुकदमा चल रहा था, वीर थे, स्वतंत्र सेनायी थे, क्रन्तिकारी थे। क्या कोई कांग्रेसी परिवार बटुकेश्वर दत्त को जेल में, कोर्ट में या अस्पताल में कहीं पर मिलने गया था? प्रधानमंत्री मोदी ने कर्णाटक के बीदर में 9 मई को चुनाव प्रचार के दौरान यह कहा। कांग्रेस पार्टी पर हमला करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने यह दावा करते हुए कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान जेल में कोई भी कांग्रेस नेता भगत सिंह, बी के दत्त और विनायक डी सावरकर से मिलने नहीं गया था। इसके बजाय कांग्रेस नेता भ्रष्टाचार के आरोप में कोर्ट ने जिनको सजा दी है, उससे मिलने के लिए जाते हैं।

कर्णाटक में 12 मई को होने वाले चुनाव को लेकर कई रैलियां की गई है। इन्हीं रैलियों के चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री को हाल ही में एक गलत दावा करते हुए पकड़ा गया था। जिसमें उन्होंने यह बताया था कि 1948 में जनरल थिमैया का पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपमान किया था। प्रधानमंत्री ने फिर से अब बीदर के भाषण में इतिहास का सन्दर्भ दिया है। ऑल्ट न्यूज़ ने प्रधानमंत्री के इस दावे की जाँच की।

क्या यह सच है कि कोई भी कांग्रेस नेता जेल में इन स्वतंत्रता सेनानियों से मुलाकात करने नहीं गए?

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अपनी आत्मकथा ‘Toward Freedom: The Autobiography of Jawaharlal Nehru’ में भगत सिंह के साथ मुलाकात याद करते हुए लिखा है। भगत सिंह को 1929 में लाहौर जेल में कैद रखा गया था। उन्होंने यह याद करते हुए लिखा है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को दिल्ली विधानसभा के अंदर 1929 में बम विस्फोट के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। वो लिखते हैं:

“मै उस समय लाहौर में था, जब भूख हड़ताल शुरू हुए एक महीना हो गया था। मुझे जेल में कुछ कैदियों से मिलने की अनुमति दी गई और मैंने इसका लाभ उठाया। मैंने पहली बार भगत सिंह, जतिंद्र नाथ दास और कुछ अन्य लोगों को देखा। वे सभी बहुत कमजोर दिख रहे थे और बिस्तर पर पड़े थे, उनसे बात करना भी मुश्किल था। भगत सिंह का आकर्षक और बौद्धिक चेहरा था, वो शांत और गंभीर दिख रहे थे। उनमें गुस्सा नहीं दिख रहा था। उन्होंने बहुत नम्रता से देखा और बात की, लेकिन तब मैंने सोचा कि जो एक महीने से उपवास कर रहा है वह नम्रता से ही तो बात करेगा। जतिन दास और भी कमजोर थे, नरम व्यक्तित्व के दिख रहे थे एक युवा लड़की की तरह। जब मैंने उन्हें देखा तो वो काफी तकलीफ में दिख रहे थे। भूख हड़ताल के इकसठवें दिन, उपवास के वजह से उनकी मृत्यु हो गई।” (अनुवाद)

Source: Twitter

वास्तव में, पंडित जवाहरलाल नेहरू के लाहौर जेल में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से मिलने की सूचना उस समय द ट्रिब्यून ने 9 और 10 अगस्त, 1929 के संस्करण में दी थी। ध्यान दिया जाए साल 1929 में ट्रिब्यून उस समय लाहौर आधारित समाचार पत्र था। इस घटना के बारे में द ट्रिब्यून में छपा रिपोर्ट नीचे देखा जा सकता है।

9 अगस्त, 1929 के रिपोर्ट में कहा गया है: “पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ गोपी चंद, M.L.C के साथ आज लाहौर सेंट्रल और बोरस्टल जेल गए और लाहौर साजिश के मामले में भूख हड़ताल पर रहने वालों से बातचीत की। पंडित जवाहर लाल नेहरु पहले केंद्रीय जेल गए, जहां उन्होंने सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त से मुलाकात की। उनके साथ उन्होंने भूख हड़ताल के बारे में बातचीत की। इन दो कैदियों से मिलने के बाद वह बोर्स्टेल जेल गए जहां उन्होंने जतिन दास, अजय घोष और शिव वर्मा समेत अन्य लोग जो भूख हड़ताल पर थे उनसे मुलाकात की जो अस्पताल में लेटे पड़े थे।” (अनुवाद)

Source: The Tribune

The Tribune ने 10 अगस्त, 1929 के रिपोर्ट में जो लोग भूख हड़ताल पर थे, उनके स्वास्थ्य के बारे में पंडित नेहरू के गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए बयान को छापा था।

Source: The Tribune

ऑल्ट न्यूज ने प्रोफेसर चमन लाल से बात की जो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं और किताब Understanding Bhagat Singh के लेखक हैं। प्रोफेसर लाल ने कहा: “कांग्रेस के साथ भगत सिंह का रिश्ता प्यार-नफरत दोनों का था। भगत सिंह का परिवार कांग्रेस का हिस्सा था। उनके पिता एक कांग्रेस कार्यकर्ता थे। भगत सिंह ने अपने पिता के साथ कांग्रेस सत्र में भी भाग लिया था। लाहौर में ब्रैडली हॉल जहां पंजाब कांग्रेस मुख्यालय था, भगत सिंह और अन्य ने पंजाब नौजवान भारत सभा की बैठकों के लिए इसका इस्तेमाल किया था। लाहौर मुकदमे के दौरान जवाहरलाल नेहरू और मोतीलाल नेहरू दोनों भगत सिंह से कई बार मिले थे। मोतीलाल नेहरू ने भी जेल में कैद कैदियों, जो आमरण भूख हड़ताल पर थे उनकी मांगों को रखने के लिए एक समिति बनाई थी। इसके अलावा, जतिन दास जो शहीद हो गए, जब वह आमरण भूख हड़ताल के कारण बीमार थे तब डॉ. गोपीचंद भार्गव ने उनकी देख-रेख की थी, जो पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष थे और जेल में नियमित रूप से आते-जाते रहते थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भगत सिंह और कांग्रेस में बहुत मतभेद थे, लेकिन प्रधानमंत्री का दावा बिल्कुल सही नहीं है।” (अनुवाद)

हालांकि यह सच है कि भगत सिंह की विचारधारा कांग्रेस की रणनीति के अनुरूप नहीं थीं। कांग्रेस की रणनीति गाँधी के संघर्ष करने के विचार से प्रेरित थी। लेकिन इस बात को नाकारा नहीं जा सकता कि जवाहरलाल नेहरू भगत सिंह से मिले थे, जब वह 1929 में अंग्रेजों के कैद में थे। इस प्रकार, प्रधानमंत्री मोदी का दावा बेबुनियाद है कि अंग्रेजों द्वारा जेल में कैद स्वतंत्रता सेनानियों से कोई भी कांग्रेस नेता मिलने नहीं गए थे।