बिटक्वाइन का हाल ट्यूलिप के फूलों जैसा न हो जाए!

वर्चुअल मुद्रा बिटक्वाइन की क़ीमत पहली बार 10 हज़ार डॉलर को छू गई है. भारतीय करेंसी में इसकी कीमत देखें तो ये लगभग साढ़े छह लाख रुपए बैठती है.

सोमवार को इसकी कीमत में अचानक साढ़े चार फ़ीसदी का उछाल आया और भारतीय मुद्रा में इसकी कीमत करीब साढ़े छह लाख हो गई.

लक्ज़मबर्ग आधारित बिटक्वाइन एक्सचेंज के मुताबिक बिटक्वाइन ने इस साल अपना सफ़र 1000 डॉलर से शुरू किया था यानी जनवरी की शुरुआत में एक बिटक्वाइन के बदले 1000 डॉलर मिलते थे.

2009 में लॉन्च होने के बाद से इस वर्चुअल करेंसी के दाम में भारी उतार-चढ़ाव आता रहा है.

भविष्य पर सवाल

हालाँकि कई विशेषज्ञों ने इस वर्चुअल करेंसी के भविष्य पर भी सवाल उठाए हैं. अमरीका के सबसे बड़े बैंक जेपी मॉर्गन चेज़ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जेमी डिमॉन ने भी इसे लेकर सवाल उठाए हैं.

कहा तो ये भी जा रहा है कि बिटक्वाइन का हश्र कहीं सत्रहवीं सदी की शुरुआत में ट्यूलिप के फूलों की कीमतों में आए अचानक उछाल जैसा न हो जाए.

इसका अंदाज़ा 1623 की एक घटना से लगा सकते हैं जब, एम्सटर्डम शहर में आज के टाउनहाउस के बराबर की क़ीमत में उस वक़्त ट्यूलिप की एक ख़ास क़िस्म की दस गांठें ख़रीदी गई थीं.

लेकिन, उस पैसे पर भी ट्यूलिप की गांठों के मालिक ने सौदा नहीं किया था. जब सत्रहवीं सदी में इस सौदे की चर्चा दूर-दराज़ तक फैली तो बाज़ार में नई-नई ख़ूबियों वाले ट्यूलिप्स की और गांठें भी आने लगीं.

इस क़िस्से को 1999 में आई माइक डैश की क़िताब ‘ट्यूलिपोमैनिया’ में बख़ूबी बयां किया गया है.

सत्रहवीं सदी के ट्यूलिप के कारोबार की सबसे बड़ी ख़ूबी ये थी कि लोग उस वक़्त फूल का नहीं, इसकी गांठों का कारोबार करते थे. यानी ट्यूलिप्स को पैसे की तरह लेन-देन में इस्तेमाल किया जाता था.

संपत्ति को ट्यूलिप की गांठों के बदले में बेचे जाने के कई क़िस्से सुने गए थे. 1633 के आते-आते इसकी मांग इतनी बढ़ गई थी कि ट्यूलिप की एक किस्म, सेम्पर ऑगस्टन की एक गांठ 5500 गिल्डर में बिकी.

गिल्डर उस वक़्त हॉलैंड की करेंसी थी. अगले चार सालों में इसकी क़ीमत दोगुनी हो गई. ये इतनी रकम थी कि उस वक़्त एक परिवार की आधी ज़िंदगी के खाने-कपड़े का ख़र्च इससे निकल आता.

1637 के आते-आते ये कारोबार बुलंदी पर पहुंच चुका था. उस वक़्त बड़े कारोबारी ही नहीं, मोची, बढ़ई और दर्ज़ी तक ट्यूलिप के धंधे में लग गए थे.

ट्यूलिप की कई गांठें तो एक दिन में दस बार तक बिक जाती थीं. तो इसके कारोबार में मंदी आनी ही थी. 1637 में ही एक दिन अचानक ट्यूलिप का बाज़ार ध्वस्त हो गया. वजह साफ़ थी. रईस से रईस लोग, सस्ता से सस्ता ट्यूलिप नहीं ख़रीद पा रहे थे.

कारोबार बैठा तो तमाम तरह की दिक़्क़तें खड़ी हो गईं. कर्ज़ लेकर कारोबार करने वालों के लिए सबसे ज़्यादा मुसीबत हो गई.

दिलचस्प बात ये रही कि ट्यूलिप का कारोबार तो ठप हुआ, मगर हॉलैंड के लोगों के बीच फूलों का शौक़ कम नहीं हुआ. असली फूल गायब हुए तो फूलों की पेंटिंग का कारोबार चल निकला.

क्या है बिटक्वाइन

बिटक्वाइन एक वर्चुअल मुद्रा है जिस पर कोई सरकारी नियंत्रण नहीं हैं.

इस मुद्रा को किसी बैंक ने जारी नहीं किया है. चूंकि ये किसी देश की मुद्रा नहीं है इसलिए इस पर कोई टैक्स नहीं लगता है.

बिटक्वाइन पूरी तरह गुप्त करेंसी है और इसे सरकार से छुपाकर रखा जा सकता है.

साथ ही इसे दुनिया में कहीं भी सीधा ख़रीदा या बेचा जा सकता है.

शुरुआत में कंप्यूटर पर बेहद जटिल कार्यों के बदले ये क्रिप्टो करेंसी कमाई जाती थी.

चूंकि ये करेंसी सिर्फ़ कोड में होती है इसलिए न इसे ज़ब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है.

एक अनुमान के मुताबिक इस समय क़रीब डेढ़ करोड़ बिट क्वाइन प्रचलन में है.

बिटक्वाइन ख़रीदने के लिए यूज़र को पता रजिस्टर करना होता है. ये पता 27-34 अक्षरों या अंकों के कोड में होता है और वर्चुअल पते की तरह काम करता है. इसी पर बिटक्वाइन भेजे जाते हैं.

इन वर्चुअल पतों का कोई रजिस्टर नहीं होता है ऐसे में बिटक्वाइन रखने वाले लोग अपनी पहचान गुप्त रख सकते हैं.

ये पता बिटक्वाइन वॉलेट में स्टोर किया जाता है जिनमें बिटक्वाइन रखे जाते हैं.