यमराज का पर्याय बन गया है वाराणसी का पॉपुलर हॉस्पिटल, लाशों के ढेर पर होती है सौदेबाज़ी ,

 

  • लाशों से पुराना याराना है पॉपुलर हॉस्पिटल का
  • बेसमेंट का होता है कमर्शियल उपयोग

वाराणसी। ककरमत्ता क्षेत्र में इस्तिथ चर्चित शवों को कब्जे में रखकर पैसा वसूलने वाला पापुलर अस्पताल का लाशों से पुराना याराना है । जगजाहिर है यहां शवों को वेंटिलेटर पर ऑक्सीजन लगाकर चिकित्सक तीमारदारों का भी ऑक्सीजन रोक देते हैं। कई कई दिनों तक शवों को जिंदा बताकर उसके परिजनों से हजारों रुपये जबरन वसूल लिए जाते हैं। शव देने के लिए भी लाचार परिजनों से सौदेबाजी करने के लिए अस्पताल के निदेशक ने दलाल पाल रखें हैं यही नही मरीजों के परिजनों को हड़काने धमकाने चमकाने फसाने और धकियाने तक के लिये मुस्टंडो की फौज अलग से है। बार बार अस्पताल में मरीजों के साथ मारपीट शवों को कब्जे में रखने का जिला पुलिस प्रशासन के संज्ञान में आता है लेकिन अब तक कोई ठोस कार्यवाही क्यों नही हुई यह आम लोगों के समझ से परे है। अस्पताल के आस पड़ोस के लोगों की माने तो जिस तरह से मानसिक चिकित्सालय मानसिक रोगियों को इलाज के दौरान यातनायें दी जाती हैं उससे कहि कम यातना इस अस्पताल के मरीजों एवं उनके परिजनों को नही दी जाती है।

खास बात तो यह भी है कि यहां के चिकित्सक को स्थानीय लोग दबी जुबान से यमराज का प्रतिनिधि कहते हैं। लोगों का कहना है कि पैसे के लोभ में उन मरीजो को भी बहुत बीमार बताकर वसुली करने से बाज नही आते जिसे झोलाछाप डॉक्टर भी भला चंगा करने का माद्दा रखते है।
पापुलर हॉस्पिटल की पॉपुलरटी सिर्फ मरीजों की सही देखभाल सही उचित इलाज की होती तो इतने कम समय मे अस्पताल इतना विकास नही किया होता। स्थानीय लोगों की मानें तो जिस वक्त इस हॉस्पिटल की नींव पड़ी तो लोगों को लगा कि अब इन्हें सस्ता औऱ बेहतर इलाज पास में मिल जाएगा दूरी कम हो गयी ,लेकिनअस्पताल ने चंद माह बाद ही अपने कारनामे दिखाने शुरू कर दिया और देखते ही देखते आसपास की जमीनों को औने पौने दामों खरीदकर लगभग कब्जा कर लिया और इसे धरती का ‘यमलोक’बना दिया ।

यहां यह देखने को मिलता है कि मरीज के परिजन आश्वस्त होकर आते हैं कि इलाज बेहतर होगा लेकिन कुछ ही समय के बाद ही रोते बिलखते यहां की व्यवस्था व्यवहार डॉक्टर को कोसते हुए जाते हैं। इस अस्पताल से जुड़े कुछ लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वह यहाँ स्टाफ जरूर हैं लेकिन अपने परिचितों का इलाज वह खुद यहां नही करवाते । कारण जिस मरीज का वो इलाज वो कुछ रुपयों में बाहरी अस्पताल में करवा लेते हैं उसी इलाज का यहां हजारों रुपये चुकाना पड़ता है।

मरीज बच गया तो मान लीजिए उसकी माँ ने खड़ी ‘जिउतिया” पूजी है या अब्बा अम्मी जरूर पांचो वक्त के नमाजी होंगे । इलाज में लापरवाही का आलम यह है कि आये दिन इस अस्पताल के प्रबंधन एवं चिकित्सक पर आरोप लगते रहे हैं ।  यही नहीप्रशासन को ठेंगा दिखाते हुए इस अस्पताल के बेसमेंट का भी पार्किंग की बजाय अस्पताल के कमर्शियल इस्तेमाल में लिया जा रहा है ।

दूर दराज से आये मरीजों के साथ जो व्यवहार किया जाता है उससे तो उनके परिजनों का साफ कहना है कि बस ईश्वर कीसी तरह हमारे मरीज को स्वस्थ कर दें हम पलट के दोबारा इस अस्पताल की तरफ देखेंगे भी नही।