हिंदी दिवस: हिंदी में है दम, मौके नहीं कम

गांवों, कस्बों और छोटे शहरों से हिंदी जब अपने संपन्न भाषाई संस्कार, देसी कहावतों, मुहावरों, किस्से-कहानियों और अंतर्निहित अनगिनत विशेषताओं के साथ रोजगार के वर्तमान प्रतिस्पर्धी मैदान में पहुंचती है, तो हिंदी जानने वालों को विजेता बना देती है। प्रौद्योगिकी से लेकर रोजगार देने वाली नए दौर की तमाम रचनात्मक विधाओं में आज हिंदी का बोलबाला है। हिंदी रोजगार की, बाजार की कमाऊ भाषा बन गई है। इसीलिए अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी जानने वाले अभिमान के साथ कह रहे हैं- हिंदी हैं हम, हम में है दम। हिंदी दिवस पर प्रस्तुत है हिंदी के इसी दम की एक छोटी सी झांकी…

260 विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है हिंदी
भारत ही नहीं, विदेशों में भी हिन्दी की पढ़ाई करने को लेकर विद्यार्थियों में रुचि बढ़ी है। आज हिंदी भारत के बाहर 260 से अधिक विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। इनमें अमेरिका के 67 और चीन के 20 विश्वविद्यालय शामिल हैं।

विदेश में दिलाती है रोजगार
ऐसा समय है, जबकि दुनियाभर में कई भाषाओं पर अस्तित्व बचाए रखने का संकट मंडरा रहा है। ऐसे में भारत के बाहर के विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्ययन और अध्यापन, दोनों के अवसर लगातार बढ़े हैं। इन विश्वविद्यालयों में प्रवासी भारतीयों के अलावा, विदेशी छात्र ग्रैजुएट से लेकर पीएचडी तक करते हैं। मॉस्को में रूसी-भारतीय मैत्री संघ ‘दिशा’ के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर सिंह बताते है कि विदेशी धरती पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अपनी एक अलग पहचान है। उसमें भी हिंदी भाषा को लेकर खासा आकर्षण है। भारतीय संस्कृति को समझने और जानने के लिए विदेशी छात्र हिंदी पढ़ते हैं। रूस के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी का अलग विभाग हैं। इसमें पूर्णकालीन प्राध्यापकों की नियुक्ति होती है। उनकी संस्था विदेश में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्य करती है। रूस में जो भारतीय व्यवसायी और कंपनियां हैं, उनमें हिंदी जानने वाले विदेशी छात्रों को नौकरी के अवसर मिलते हैं। कोशिश यही होती है कि हिंदी केवल भारतीयों के लिए ही नहीं, विदेशी विद्यार्थियों के लिए रोजगार परक भाषा बने।

डॉलर में होती है कमाई
मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय बताते हैं कि विदेशों में भी जहां भारतीय बसे हैं, वहां पर हिंदी में ही बात करते हैं। देश में स्कूल के शिक्षकों का औसत वेतन 30 हजार रुपये है, जबकि जूनियर कॉलेज में भी वेतन इससे अधिक है। जो विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं, उनकी वेतन 50 हजार से दो लाख रुपये तक है। विदेशी विश्वविद्यालयों में प्राध्यापकों की वेतन डॉलर में है, जो यहां के प्राध्यापकों से कहीं अधिक है।

विदेशों में ज्यादातर उन्हीं प्रफेसरों की मांग है जो हिंदी के अलावा उस देश की भाषा भी जानते हैं। मसलन कोई प्रफेसर यदि कोरिया, जापान, चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस आदि किसी भी देश में जा रहा है तो उस देश की भाषा का ज्ञान अपेक्षित माना जाता है। विदेशों में हिंदी प्राध्यापकों को भेजने का कार्य ‘भारतीय सांस्कृतिक और संबंध परिषद’ तथा ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा’ द्वारा किया जाता है। केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा प्राध्यापकों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। पुस्तक ‘हिंदी का विश्व संदर्भ’ में अनेक विश्वविद्यालयों की सूची है, जहां पर हिंदी अध्ययन- अध्यापन की सुविधा उपलब्ध है।

 

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