Internet की 96% दुनिया है Dark, यहां बिकते हैं ड्रग्स और खतरनाक हथियार

इंटरनेट की 96 फीसदी दुनिया डार्क है. ये आम यूजर्स की पहुंच से दूर है. हम सिर्फ 4 फीसदी विजिबल इंटरनेट का ही इस्तेमाल करते हैं. बाकी का 96 फीसदी ‘इंटरनेट’ सर्च इंजन गूगल क्रोम, मोज़िला फायरफॉक्स, माइक्रोसॉफ्ट एज और बिंग की पहुंच से कोसो दूर है. दुनियाभर में जितने भी गैर-कानूनी काम होते हैं वो सारे इसी ‘डार्क’ इंटरनेट पर होते हैं. आइये जानते हैं आखिर क्या है डार्क इंटरनेट की दुनिया का रहस्य…

तीन लेयर में बना है इंटरनेट
दरअसल, इंटरनेट तीन अलग-अलग लेयर में बना है. ये लेयर सरफेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब हैं. इंटरनेट की टॉप लेयर सरफेस वेब कहलाती है. इसे हम सर्च इंजन के जरिए देख सकते हैं. एक्सेस कर सकते हैं. जब से पहला ब्राउजर बना है तब से सरफेस वेब, वर्ल्ड वाइड वेब का पार्ट है. यानी जो भी सर्च इंजन से पब्लिकली ऐक्सेसबल है, वो सरफेस वेब है. जबकि डीप वेब इससे करीब 500 से 5,000 गुना बड़ा है. इससे नीचे की लेयर डीप और सतह को डार्क वेब कहते हैं.

डार्क वेब


डार्क वेब इनविजिबल वेब है. यह वर्ल्ड वाइड वेब का हिडन (छिपा हुआ) पार्ट्स है. इसे आम ब्राउजर के जरिए एक्सेस नहीं किया जा सकता है. यहां HTML फॉर्म में कंटेंट छिपा रहता है. डार्क वेब तक स्पेशल एक्सेस के जरिए ही पहुंचा जा सकता है. यहां यूजर्स की सारी जानकारी हिडन तौर पर रहती है. डार्क वेब तक पहुंचने के लिए यूजर्स को स्पेशल सॉफ्टवेयर की जरूरत होती है. ये सॉफ्टवेयर यूजर्स की एक्टिविटी को हिडन रखते हैं. यह यूजर्स की अन्ट्रेसबल ऑनलाइन एक्टिविटी का नेटवर्क है. डार्क वेब तक पहुंचना बेहद खतरनाक है, पकड़े जाने पर गैर-कानूनी एक्टिविटी में लिप्त होने का जोखिम हो सकता है और कानून मुताबिक सजा हो सकती है.

किसने बनाया डार्क वेब?
डार्क वेब अमेरिकी सरकार की देन है. 90 के दशक में अमेरिकी मिलिट्री रिसर्चर्स ने जासूसी के लिए इसे बनाया था. डार्क वेब को इसलिए बनाया गया था ताकि सरकारी जासूस गुमनाम तौर पर सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकें. यह स्पष्ट है कि इसे बनाने का मकसद दूसरे देशों की जासूसी करना था. यूएस मिलिट्री ने यहां तक जाने के लिए Tor टेक्नोलॉजी विकसित की. कुछ ही वक्त में Tor को पब्लिक डॉमेन में रिलीज कर दिया गया, ताकि इसका इस्तेमाल सार्वजनिक हो सके. Tor के जरिए ही डार्क वेब तक पहुंचा जा सकता है. इस वक्त Tor पर 30 हजार से ज्यादा हिडन साइट्स हैं.

ड्रग्स और हथियारों की होती है खरीद-फरोख्त
दरअसल, कुख्यात अपराधियों से लेकर क्रिमिनल माइंडेड लोग अपनी गैर-कानूनी गतिविधियां छुपाने के लिए डार्क वेब का इस्तेमाल करते हैं. पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी के शोध की मानें तो डार्क वेब का सबसे ज्यादा यूज चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, ब्लैक मार्केट, ड्रग्स की खरीद-फरोख्त और हथियारों की सौदेबाजी के लिए होता है. डार्क वेब का यूज व्हिसलब्लोअर के तौर पर भी किया जाता है. जुलियन अंसाजे WikiLeaks को डार्क वेब पर ही चलाते हैं.

अगर पुलिस को आपके डार्क वेब यूज करने के साक्ष्य मिले तो सजा हो सकती है. विभिन्न देशों की सरकारों ने डार्क नेट पर नजर रखने के लिए साइबर क्राइम यूनिट बनाई हुई है. डार्क वेब को एक्सेस करने के लिए यूजर्स को अपना IP एड्रेस हाइड करना पड़ता है. ताकि लोकेशन ट्रेस ना हो सके. यहां तक VPN (वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क) के जरिए ही पहुंचा जा सकता है. लेकिन इसमें खतरा है.

 

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