गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में प्राइवेट प्रैक्टिस कई डाक्टर कर रहे हैं, उन पर काररवाई क्यों नहीं?

लखनऊ. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में आई जांच रिपोर्ट के बाद अब सरकार पर सवाल उठने लगे हैं. सवाल उठाने वालों का कहना है कि अगर प्राइवेट प्रैक्टिस करना जुर्म है तो वह सबके लिए है. दूसरी ओर इस काण्ड में कार्रवाई एक कदम और आगे बढ़ी है. अब इंसेफ्लाईटिस वार्ड के इंचार्ज डॉ. कफील अहमद और एनस्थीसिया विभाग के इंचार्ज डॉ. संतोष को निलंबित कर दिया गया है. इस प्रकार इस काण्ड में अब तक कुल सात डाक्टरों और कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है.

इस बीच सरकार को सौंपी गयी जांच रिपोर्ट के बाद लोगों का कहना है कि जिम्मेदारों को यह भी तो देखना चाहिए कि प्राइवेट प्रैक्टिस में कितने लोग लिप्त हैं. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ही यह ढूंढ़ना मुश्किल काम नहीं है. कैंपस में ही दिख जायेगा कि कितने डाक्टर प्राइवेट प्रक्टिस कर रहे हैं. निलंबित किये गए डॉ. कफील पर भी मुख्य आरोप प्राइवेट प्रैक्टिस करने का है.

हालांकि इस बारे में शासन के सूत्र बताते हैं कि फिलहाल जांच समिति ने 10-11 अगस्त को हुई मौतों की घटना और उससे उपजे हालात को लेकर जांच की है. इसलिए इस काण्ड से सीधे जुड़े लोगों पर ही अभी कार्रवाई की बात कही गयी है.

ज्ञात हो गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में बीती 10-11 अगस्त को ऑक्सीजन की कमी से 30 बच्चों की मौत हो गयी थी. मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी जिसके बाद कार्रवाई होना शुरू हुआ है.

 

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