जानें, क्या होती है ब्रेन मैपिंग, क्या है करने का तरीका ?

अक्सर हम टीवी अखबार और कई ऐसे संचार के माध्यमों द्वारा देखते रहते हैं कि किसी संगीन अपराध में अपराधी का नार्को टेस्ट, डीएनए टेस्ट, पॉलीग्राफ टेस्ट किया जाता है। इन टेस्ट के जरिए पुलिस ये पता लगाने की कोशिश करती है कि आरोपी उस घटना से किसी तरह का कोई संबंध रखता है या नहीं। ऐसे में इन टेस्ट को कराने के लिए सबसे पहले पुलिस को कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ती है। इन टेस्ट के अलावा एक और टेस्ट होता है जिसे ब्रेन मैपिंग कहते हैं। इस टेस्ट के जरिए पुलिस पता करती है कि उस व्यक्ति ने उस घटना को अंजाम दिया है या नहीं, या फिर उस घटना से संबंधित किसी तरह का कोई ऐसा सबूत तो नहीं जानता है जिससे पुलिस को साक्ष्यों को जुटाने में आसानी हो। मामले की तह तक जाने के लिए पुलिस इस टेस्ट को कराती है। ब्रेन मैपिंग टेस्ट को कराने के लिए पुलिस को सबसे पहले कोर्ट में इसके लिए अर्जी देनी पड़ती है और बताना पड़ता है कि इस टेस्ट की जरुरत आखिर क्यों पड़ी है। सभी पहलुओं पर विचार करते हुए कोर्ट इस टेस्ट को कराने की अनुमति देता है। अगर कोर्ट को लगता है कि इसकी कोई जरुरत नहीं है तो वो मना भी कर सकती है। आइए आपको बताते हैं कि आखिर ब्रेन मैपिंग होता क्या है और कैसे किया जाता है और कोर्ट से इसकी परमिशन क्यों लेनी पड़ती है?

क्या होती है ब्रेन मैपिंग?

ब्रेन मैपिंग एक सेंसर आधारित टेस्ट होता है जिस में संबंधित आरोपी के सिर पर सेंसर लगाए जाते हैं जिसमें इलेक्ट्रोड की पतली रॉड लगी होती हैं और सामने एक कम्प्यूटर स्क्रीन लगी होती है जिसपर आरोपी के दिमाग की तस्वीरें दिखाई देने लगती हैं। सेंसर लगाने के बाद आरोपी से घटना से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। जब आरोपी से सवाल पूछे जाते हैं और उसका जवाब आरोपी देता है तो उन जवाबों को संबंधित घटना से मिलान किया जाता है कि दी गई जानकारी से ये मेल कर रही है की नहीं। अगर दोनों बातें मिलान कर रही हैं तो उस समय P300 तरंगे निकलने लगती है जिसे कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखा जाता है।

कैसे तय किया जाता है कि व्यक्ति घटना से संबंध रखता है?

दरअसल, जब हम कोई भी काम करते हैं और उसके बारे में सोचते हैं तो उसकी एक तस्वीर हमारे दिमाग में बैठ जाती है। इसी तरह जब कोई अपराधी किसी घटना को अंजम देता है तो वहां पर मौजूद ज्यादातर चीजें उस आरोपी के दिमाग में चल रही होती हैं। जब आरोपी से घटना से संबंधित सवालों को पूछा जाता है तो वो सारी चीजें दोबारा से उसके दिमाग में आने लगती हैं और इन्हीं साक्ष्यों के मिलान होने पर P300 टाइप की तरंगे निकलने लगती हैं।

1- EEG(Electro Encephalogram)
इसकी मदद से दिमाग की सामान्य और असामान्य स्थितियों का पता लगाया जाता है। इसमें संबंधित व्यक्ति के सिर पर इलेक्ट्रोड की रॉड लगाई जाती हैं। इन रॉड की सहायता से दिमाग में मौजूद न्यूरॉन्स की इलेक्ट्रिकल हरकत को रिकॉर्ड किया जाता है।

ERP(Event Related Potential) इसके द्वारा संबंधित व्यक्ति के दिमाग की गति को मापा जाता है, और ये तय होता है कि व्यक्ति का दिमाग इस समय उस घटना से संबंधित चीजों पर क्या वर्क कर रहा है।

कोर्ट की लेनी पड़ती है परमिशन

इस टेस्ट को कराने से पहले जांच कर रही संस्था को कोर्ट से परमिशन लेनी पड़ती है। जरुरी नहीं होता है कि कोर्ट इसकी अनुमति दे दे। साथ ही 5 मई 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि आरोपी या संदिग्ध की सहमति के बिना नार्को, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट नहीं किए जा सकते हैं।

 

read more at-